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Subtle Complexities and Myriad Simplicities by Ashok Subramanian P is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.

Wednesday, September 22, 2010

Untitled

वक़्त के साथ बदलतीं हैं करवटें,
सुनाएँ एक क़िस्सा तुमको,
अगर लगे ये तुम्हें नामुम्किन,
तो सब्र करें और सुनें! १ ||

'ये बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं',
मय्या से सुनते बड़े हुए,
खेल-ए-जवानी ने भुला दी बात,
पचताए, और आज ये रच दिए! २ ||

ग़ज़ल-ए-मोहब्बत या नज़्म-ए-ख़ौफ़,
यह तो तुम ही हमें बताओ,
प्रारंभ किए थे इन अल्फ़ाज़ से,
'मुझसे दोस्ती करोगे?'! ३ ||

लाचार थें हम या बदनसीब,
ये न जाने हम कभी,
'हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं',
बस इसी सोच से सहलाते! ४ ||

इश्क़-ओ-मोहब्बत थोंपा गया,
एक शरद आधी रात में,
झूल रहे थे हम बेफिक्र,
उस मौन काल में जम गए! ५ ||

'भाई, टेंशन नहीं लेनेका भाई',
कहते गए मेरे अनगिनत मित्रगण,
आज मैं बेचारा बैठा महफ़ूज़,
कुछ न कह पाया दोस्ताना! ६ ||

होंठ थे उसके या मधु की चषक,
डूब-उभरे थे उन चक्षु में,
घोंट ली अंदाज़ ने साँस मेरी,
ख़्याल हमें अब भी तड़पाए! ७ ||

टहनी-टहनी, शाखा-शाखा,
झूले उस मल्हार में,
चुपचाप से आज ये नरम पत्ते,
ख़ामोशी में चीख़ उठे! ८ ||

ज़र्रे-ज़र्रे ने हमें भरोसा दिलाया,
कि इस सफ़र में हम अकेले न अच्छे,
शोभा दे हमें वह हमसफ़र जिसके,
यादगार-ए-घाव अब भी कच्चे! ९ ||

फिर हमने उसको बताया गुनेगार,
वो जो सपनों को तब भी सताती,
रो दिया हमारे लिए दरिया,
और वो किनारा बनकर बस गई! १॰ ||

अब आरोप न उस पर लगाएँ हम,
ग़ुस्सा तो हमें ख़ुद पर आए,
कच्ची मिट्टी-प्याले की तरह,
आब-ए-चश्म में हम घुल गए! ११ ||

आज हम अगर कभी हुए भावुक,
तो आमिर के पुतले को मन में पूजे.
'आल इज वेल' का नारा लगाते,
और ये क़िस्सा हम सुनाते! १२ ||

Written for Hindi Creative Writing GC, all filmy topics, had to use 5 out of 10 given Bollywood's favourite one-liners(in quotes).

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